दो दिन बीत जाने पर की बात है, जमादार नहा चुके थे, बिल्लेसुर भी नहाकर आये।
आकर सीधे जमादार के पास गये और उनके पैर पकड़ कर पेट के बल लेट गये। 'क्या है बिल्लेसुर? क्या है बिल्लेसुर?'
जमादार शंका की दृष्टि से देखते हुए पूछने लगे। बिल्लेसुर ने करुण स्वर से कहा, 'कुछ नहीं, बाबा, मेरा भवसागर से उद्धार करो।'
भवसागर से उद्धार हम कैसे करें, बिल्लेसुर? क्या हो गया है?' सत्तीदीन विचलित हो गये।
पैर पकड़े गए ही बिल्लेसुर ने कहा, 'बाबा, मुझे गुरुमन्त्र दो!'
'अरे, गुरु यहाँ एक-से-एक बड़े हैं, छोड़ो पाँव, उनमें जिससे चाहो, मन्त्र ले लो।' सत्तीदीन ने पैर छुड़ाने को किया।
'मेरी निगाह में तुमसे बड़ा कोई नहीं। तुम मुझ पर दया करो।' पैर पकड़े हुए बिल्लेसुर ने पैरों पर माथा रख दिया।
'मुझे तो काई गुरुमन्त्र आता ही नहीं। सिर्फ़ गायत्री आती है।' विकल होकर सत्तीदीन ने कहा।
'बाबा, गायत्री से बड़ा गुरुमन्त्र और कोई नहीं। मैं यही मन्त्र लूँगा।'
'अरे, गायत्री तो जनेऊ होते वक़्त तुम सुन चुके हो।'
'मैं भूल गया हूँ। तुम्हारे पैर छूकर कहता हूँ। कल मैने सपना देखा है कि बाबा जगन्नाथ जी कहते हैं.........लेकिन कहूँगा तो सपना फलियायगा नहीं।'